Best bashir badar shayari , Poetry with Images


हेलो दोस्तों नमस्कार सत् श्री अकाल! 
    
शायरी की दुनिया में एक मशहूर और जाना माना नाम जिसको किसी  परिचय की जरुरत नहीं। जिन्होंने लोगों के दिलों में अपनी एक खास पहचान बनाई है लोगों के दिलों की धड़कनों में अपनी शायरी में उतारा है।  आज हम जिस महान शायर की बात कर रहे हैं उर्दू शायरी और गज़लों के मशहूर लेखक और शायर बशीर बद्र जी की, जिनको हम बचपन से सुनता आ रहे हैं । 

Best bashir badar shayari
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 आज के दौर में भी हम उनकी गज़ले और शायरियों को सुनते हैं । उनके द्वारा लिखे गए  शब्द जैसे बोलते हैं। सच तो शायरी के दीवाने जानते ही होंगे के उनकी कलम का जादू क्या हैं।  क्यों हम सब उनके और उनकी शायरी के दीवाने हैं।




आपको बताते चले के भोपाल, मध्य प्रदेश से ताल्लुकात रखने वाले  डॉ॰ बशीर बद्र जी का जन्म १५ फ़रवरी १९३६ को कानपुर में हुआ था।  और बशीर जी का पूरा नाम सैयद मोहम्मद बशीर है जिसको कम ही लोग जानते हैं ।

बशीर जी आज हिन्दी और उर्दू के देश में सबसे मशहूर और पसंदीदा शायर के रूप में जाने जाते हैं। भारत ही नहीं भारत के बहार भी बशीर बद्र साहब एक बहुत ही मशहूर शायर हैं ।  उन्होंने उर्दू ग़ज़ल को एक नया लहजा दिया है । बशीर बदर साहब को 1999 में भारत सरकार द्वारा उर्दू और हिंदी में उनके योगदान के लिए 'पद्‌मश्री' से सम्मानित किया गया।

बशीर बद्र साहब उर्दू और हिंदी शायरी के उन पैमानों को स्थापित करते हैं जहां आसान से आसान  शब्दों में गहरी से गहरी बात भी आसानी से कह दी जाती है। बशीर बदर जैसे शायर ही लोगों के दिलों में अपनी एक जगह बना पाते है।  इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा के बशीर बद्र जी भी लोगों के शायर हैं जिनको आम से ख़ास तक हर कोई पसंद करता है। बहुत बार तो अपनी बात कहने के लिए नेता लोग बशीर साहब को संसद में भी पढ़  चुके है।

Best bashir badar shayari , Poetry with Images


आज हम आपके लिए  डॉ॰ बशीर बद्र साहब की  लिखी कुछ मशहूर शायरी को इमेजेज के रूप में आपके सामने लेकर हैं हैं इस ब्लॉग के माध्यम से।

है अजीब शहर कि ज़िंदगी, न सफ़र रहा न क़याम है


है अजीब शहर कि ज़िंदगी, न सफ़र रहा न क़याम है

कहीं कारोबार सी दोपहर, कहीं बदमिज़ाज सी शाम है


कहाँ अब दुआओं कि बरकतें, वो नसीहतें, वो हिदायतें

ये ज़रूरतों का ख़ुलूस है, या मतलबों का सलाम है


यूँ ही रोज़ मिलने कि आरज़ू बड़ी रख रखाव कि गुफ्तगू

ये शराफ़ातें नहीं बे ग़रज़ उसे आपसे कोई काम है


वो दिलों में आग लगायेगा में दिलों कि आग बुझाऊंगा

उसे अपने काम से काम है मुझे अपने काम से काम है


न उदास हो  न मलाल कर, किसी बात का न ख्याल कर कई साल बाद मिले है हम, तिरे नाम आज कि शाम कर



कोई नग्मा धुप के गॉँव सा, कोई नग़मा शाम कि छाँव सा ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है


आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा



आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा

कश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा


बेवक़्त अगर जाऊँगा, सब चौंक पड़ेंगे

इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा


जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है

आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा


ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं

तुमने मेरा काँटों-भरा बिस्तर नहीं देखा


पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला

मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा


मै कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है


मै कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है

मगर उसने मुझे चाहा बहुत है


खुदा इस शहर को महफूज़ रखे

ये बच्चों की तरह हँसता बहुत है


मै तुझसे रोज़ मिलना चाहता हूँ

मगर इस राह में खतरा बहुत है


मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा

ये बच्चा रात में रोता बहुत है


इसे आंसू का एक कतरा न समझो

कुँआ है और ये गहरा बहुत है


उसे शोहरत ने तनहा कर दिया है

समंदर है मगर प्यासा बहुत है


मै एक लम्हे में सदियाँ देखता हूँ

तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत है


मेरा हँसना ज़रूरी हो गया है

यहाँ हर शख्स संजीदा बहुत है


मेरे बारे में हवाओं से वो कब पूछेगा



मेरे बारे में हवाओं से वो कब पूछेगा

खाक जब खाक में मिल जाऐगी तब पूछेगा


घर बसाने में ये खतरा है कि घर का मालिक

रात में देर से आने का सबब पूछेगा


अपना गम सबको बताना है तमाशा करना,

हाल-ऐ- दिल उसको सुनाएँगे वो जब पूछेगा


जब बिछडना भी तो हँसते हुए जाना वरना,

हर कोई रुठ जाने का सबब  पूछेगा


हमने लफजों के जहाँ दाम लगे बेच दिया,

शेर पूछेगा हमें अब न अदब  पूछेगा


मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला


अगर गले नहीं मिलता, तो हाथ भी न मिला

घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे


बहुत तलाश किया, कोई आदमी न मिला

तमाम रिश्तों को मैं, घर में छोड़ आया था


फिर इसके बाद मुझे, कोई अजनबी न मिला

ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने


बस एक शख़्स को मांगा, मुझे वही न मिला

बहुत अजीब है ये कुरबतों की दूरी भी

वो मेरे साथ रहा, और मुझे कभी न मिला


सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा



सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा

इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा


हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है

जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा


कितनी सच्चाई से मुझसे, ज़िन्दगी ने कह दिया

तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा


मैं खुदा का नाम लेकर, पी रहा हूं दोस्तों

ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा


सब उसी के हैं, हवा, ख़ुशबू, ज़मीन-ओ-आसमां

मैं जहां भी जाऊंगा, उसको पता हो जाएगा


यूं ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो



यूं ही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो

वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो


कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से

ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो


अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आएगा, कोई जाएगा

तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो


मुझे इश्तिहार-सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियां

जो कहा नहीं, वो सुना करो, जो सुना नहीं, वो कहा करो


ये ख़िज़ां की ज़र्द-सी शाल में, जो उदास पेड़ के पास है

ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो


अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा


अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा

मगर तुम्हारी तरह कौन मुझे चाहेगा


तुम्हें ज़रूर कोई चाहतों से देखेगा

मगर वो आँखें हमारी कहाँ से लायेगा


ना जाने कब तेरे दिल पर नई सी दस्तक हो

मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आयेगा


मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूँ

अगर वो आया तो किस रास्ते से आयेगा


तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है

तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सतायेगा


लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में



लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में

तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में


और जाम टूटेंगे, इस शराबख़ाने में

मौसमों के आने में, मौसमों के जाने में


हर धड़कते पत्थर को, लोग दिल समझते हैं

उम्र बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में


फ़ाख़्ता की मजबूरी ,ये भी कह नहीं सकती

कौन साँप रखता है, उसके आशियाने में


दूसरी कोई लड़की, ज़िंदगी में आएगी

कितनी देर लगती है, उसको भूल जाने में




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दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाईश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिन्दा न हों
इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।
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हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा
लोग टूट जाते हैं एक घर बनानें में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलानें में।
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जिस दिन से चला हूं मेरी मंज़िल पे नज़र है
आंखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा |
 पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,
आँखो को अभी ख्वाब छुपानें नहीं आते ।
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शौहरत की बुलन्दी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पर बैठे हो, वो टूट भी सकती है
 कोई हाथ भी न मिलायेगा, जो गले लगोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो ।
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 एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगाज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये ।
मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत हैमगर उस नें मुझे चाहा बहुत है ।
Conclusion : उम्मीद है आपको हमारी आज की पोस्ट बशीर बदर शायरी इन हिंदी और उर्दू आपको पसंद आयी होगी आप अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरुर बताएं